"कविता जीने की प्रवृत्ति सिखाती है-गिरीश पंकज"
"कविता एक की नहीं सबकी बात करती है -डॉ.चितरंजन कर "
लक्ष्मीनारायण लहरे
रायपुर ।वृंदावन हॉल रायपुर में भाषाविद् एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. चितरंजन कर के मुख्य आतिथ्य, लब्धप्रतिष्ठ व्यंग्यकार गिरीश पंकज की अध्यक्षता एवं संजीव ठाकुर व डॉ. मृणालिका ओझा के विशिष्ट आतिथ्य में संकेत साहित्य समिति के तत्वावधान में छत्तीसगढ़ रजत जयंती पर- सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया।इस अवसर पर शरदेन्दु झा एवं गणेशदत्त झा विशेष रूप से उपस्थित रहे।कार्यक्रम के आरंभ में विषय की प्रस्तावना देते हुए संकेत साहित्य समिति के संस्थापक एवं प्रांतीय अध्यक्ष डॉ माणिक विश्वकर्मा 'नवरंग' ने छत्तीसगढ़ रजत जयंती की महत्ता एवं विकास यात्रा पर प्रकाश डाला। अपने सारगर्भित उद्बोधन में मुख्य अतिथि डॉ. चितरंजन कर ने कहा कि जो व्यस्त रहता है वही समय की कीमत समझता है। कविता किसी एक की नहीं सबकी बात करती है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे
गिरीश पंकज ने कहा कि गोष्ठी में विषय देने से नयी कविता लिखने की प्रेरणा मिलती है।कविता के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि कविता जीने की प्रवृत्ति सिखाती है, समाज को दिशा देती है ,वह छवि चमकाने का साधन नहीं होती।सुपरिचित कवयित्री पल्लवी झा के सफल संचालन में जिन कवियों एवं कवयित्रियों ने काव्य पाठ किया उनमें डॉ.चितरंजन कर , गिरीश पंकज , डॉ. माणिक विश्वकर्मा 'नवरंग', संजीव ठाकुर, डॉ.मृणालिका ओझा, लतिका भावे, डॉ. सुकदेवराम साहू, डॉ.डी.पी.देशमुख, डॉ.दीनदयाल साहू, शकुंतला तरार, डॉ. कोमल प्रसाद राठौर, पल्लवी झा, सुषमा पटेल, अनिता झा, सुमन शर्मा वाजपेयी, गोपाल जी सोलंकी, छबीलाल सोनी, राजेश अग्रवाल, डॉ.रविन्द्र सरकार, श्रवण चोरनेले, हरीश कोटक, माधुरी कर, रीना अधिकारी, ऋषि साव, दिलीप वरवंडकर, शिवशंकर गुप्ता,मन्नु लाल यदु , प्रीति रानी तिवारी , लवकुश तिवारी, यशवंत यदु , कमलेश अग्रवाल, अनिल सिंह एवं देवाशीष अधिकारीके नाम प्रमुख हैं।पढ़ी गईं रचनाओं के प्रमुख अंश निम्नानुसार हैं-
● अवध धाम बर खास,पालकी सजगे भाई।
कर सोलह श्रृंगार, पहुँचगे सीता माई।।
- पल्लवी झा
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● सजते फूलों के गुलदस्ते हैं
भरमाया उत्सव में ये मन,
अनायास तब मुझे सूझता,
चलो अलग अब चुप बैठें हम।
-डॉ मृणालिका ओझा
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● पहले चम्मच थे स्टील, लकड़ी और बांस के। आज बनने लगे हैं चमचे हाड़ मांस के। - डॉ रविंद्रनाथ सरकार
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● समग्र विकास की ओर क़दम बढ़ा चुके हैं हम। सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास साबित कर चुके हैं हम।।
जय छत्तीसगढ़ जय जोहार / सुख शांति समरसता की बहती यहां बयार
-- गोपाल जी सोलंकी
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● पले हैं जो रहम-ओ-करम पे हमारे ,
वो अहसान हम पे जताने लगे हैं ।
-राकेश अग्रवाल
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● हमारी तुम्हारी परवरिश एक ही ज़मीं पर हुई,
लगता है तुम्हारी परवरिश तुम्हें धोखा दे गई - हरीश कोटक
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● सप्त ऋषियों की धरा ये पावन संस्कृतियों की थाती है ।
प्रगति का सोपान जो गढ़ती छत्तीसगढ़ की माटी है ।।
- शकुंतला तरार
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● लोकगीत कर्मा नाचा, गम्मत ददरिया हे,
महतारी अँचरा म, गौरव सम्मान के।
‘सुषमा’ सुघ्घर बोली, हाँसी-खुशी संगी टोली, भाखा छत्तीसगढ़ी म, गूँजे जय गान के।
- सुषमा प्रेम पटेल
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● एक नवंबर, दो हज़ार को, नया सवेरा आया। भारत के हृदय स्थल में, छत्तीसगढ़ मुस्काया।।
- लवकुश तिवारी
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● सबके मन में लगी है आस ।
अब चहुं और होगा विकास ।
- शिवशंकर गुप्ता, रायपुर
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● मोर छत्तीसगढ़ के तैतीस जिला,
भुइयां के सिंगार।
आवा जमो झन मिलजुर,
महतारी ल पहिराबो हार ।।
- सुमन शर्मा वाजपेयी
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● शीत ऋतु आई देखो शीत ऋतु आई। बरखा ने ली अंगड़ाई और ले ली है विदाई ।। देखो शीत ऋतु आई।।
- लतिका भावे
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● इतने सालों बाद भी ,लाल क़िला पूछता
क्या इतिहास दोबारा लिखा जा सकता है
उन उँगलियों से ,जो स्याही से नहीं,
लहु से भीगी हों? - संजीव ठाकुर
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● यादों के झरोखों में डायरी के
कुछ पन्ने ऐसे होते हैं !
जो महसूस किये जाते हैं !
कुछ कोरे अहसास बन रह जाते हैं !
- श्रीमतीअनिता झा
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● मोर पीरा इंहा कोन - कोन सुनही संगी,
दुःख के अंचरा दुखारिन मन ही जाने,
- ऋषि साव
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● कोई समझ न पाया कैसा तेरा जहां है
ढूंढा दशों दिशाएं पर तू छुपा कहां है
- छबीलाल सोनी
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● अर्थी पर डालने के लिए कंडे के किए गए टुकड़ों में से बहुत से यूं ही पड़े रह गए थे।
- राजेंद्र ओझा
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● मैहा गीत मया के गावत हव,
तहु हा मोर संग गा ले।
मनखे मनखे ल भावत हव,
आना मया प्रीत जगा ले।
डॉ.दीनदयाल साहू
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● मुड़ी धर के सोंचत-गुनत हे
सुखराम गौटिया।
घेरी बेरी के संसो फिकर म
निकल गे पूरा रथीया।।
- डॉ.डी पी देशमुख
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● धन्य है छत्तीसगढ़ महतारी चरणन मा प्रणाम, तोर माटी के सुगंध मा बसथे जीवन के धाम। - प्रीति रानी शुक्ला
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● हम क्षितिज की ओर बढ़ते जा रहे हैं।
नित नये सोपान चढ़ते जा रहे हैं।।
- डॉ.माणिक विश्वकर्मा 'नवरंग'
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● चेतना क्यों सुप्त है तू, जागरण की बात कर। श्रेष्ठ जीवन और प्रेरक, उद्धरण की बात कर।। - गिरीश पंकज
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● नदियों ने नाम नहीं बदला ,जग क्यों बँटने लगा मित्र । कल वायु बँटेगी क्या अचरज ,नवगीत घटने लगा मित्र।
- डॉ. चितरंजन कर
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